Bhagat Singh: एक साहसी क्रांतिकारी की साहसिक कथा

shaheed bhagat singh

Bhagat Singh भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक थे, जिन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। जलियांवाला बाग हत्याकांड से प्रेरित होकर, उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष शुरू किया और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बने

Bhagat Singh की जयंती पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। उन्होंने अपनी प्रबल इच्छाशक्ति और स्वतंत्रता की तीव्र लालसा के साथ अपना जीवन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ समर्पित कर दिया। मात्र 23 साल की उम्र में, 23 मार्च 1931 को उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी।

कैसे बने भगत सिंह क्रांतिकारी

12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड देखने के बाद, भगत सिंह ने भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने का संकल्प लिया। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्य थे। एक बार, उनके पिता किशन सिंह को उनकी रिहाई के लिए 60,000 रुपये की बड़ी रकम चुकानी पड़ी थी। लेकिन भगत सिंह का देशप्रेम इतना गहरा था कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए घर छोड़ दिया।

जब लाला लाजपत राय की क्रूर पिटाई और उनकी मृत्यु हुई, तो भगत सिंह और उनके साथियों ने बदला लेने की प्रतिज्ञा की। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने मिलकर लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार अधिकारी जॉन पी. सॉन्डर्स को निशाना बनाया, जिसे गलती से जेम्स ए. स्कॉट समझ लिया गया था। इन तीनों क्रांतिकारियों को 23 मार्च 1931 को बिना किसी पूर्व सूचना के फांसी दे दी गई, जिससे देशभर में शोक और आक्रोश फैल गया। उनका बलिदान आज भी सभी को प्रेरित करता है और उनकी विरासत लोगों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और न्याय के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती है।

Bhagat Singh समाजवाद के प्रबल समर्थक थे और एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जहाँ संसाधन समान रूप से वितरित हों। उनके विचार अराजकतावाद और मार्क्सवाद से भी प्रभावित थे।

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