Financial Crime Story 1″Natwarlal : ठगों का देवता और उसकी रहस्यमय कहानिया

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Natwarlal के पिता का नाम रघुनाथ प्रसाद था. वह एक धनी जमींदार थे. Natwarlal का असली नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था. उनका 1912 में जन्म बिहार के सीवान ज़िले के बंगरा गांव में हुआ था. Natwarlal एक कुख्यात ठग थे. उन्होंने कई बार सरकारी कर्मचारी बनकर ताजमहल, लाल किला, राष्ट्रपति भवन, और संसद भवन को बेचा था

Natwarlal का आपराधिक करियर

Natwarlal ने छोटी-छोटी चोरियाँ करके शुरुआत की। वह रेलवे फ्रेट ऑफिस में घुस जाता और उठाए जाने वाले सामान की जाँच करता। फिर वह रेलवे अधिकारियों को फर्जी रिलीज़ ऑर्डर और चेक जारी करता और सामान लेकर गायब हो जाता। उसने जो सामान चुराया, उसमें 135 रुपये का एक हारमोनियम, एक बेंज इंजन और 1,000 रुपये का एक स्क्रू बॉक्स शामिल था।

40 के दशक में, मिथिलेश कुमार ने कपड़ा वस्तुओं की कमी का फायदा उठाते हुए बड़े पैमाने पर कारोबार किया। तब से ही उसे नटवरलाल नाम मिला। उसने खुद को बॉम्बे में कपड़ा आयुक्त के लिए खरीद अधिकारी के रूप में पेश किया। नटवरलाल नामक एक गुजराती सहयोगी के साथ, उन्होंने उन निर्माताओं से संपर्क किया जो कपास के आउट-ऑफ-टर्न आवंटन पाने के इच्छुक थे।दोनों ने बड़ी अग्रिम राशि ली, फर्जी रेलवे रिलीज सर्टिफिकेट जारी किए और डीलरों से आजमगढ़ स्टेशन से माल लेने के लिए कहा। जब डीलर स्टेशन पहुंचे, तो उनके लिए कोई माल नहीं था। मिथिलेश पकड़ा गया, जबकि उसका साथी नटवरलाल भाग गया। लेकिन पुलिस को लगा कि वह नटवरलाल है। यह नाम अटक गया और जल्द ही देश में धोखाधड़ी का पर्याय बन गया।

विचित्र था Natwarlal का ठगी करने का  तरीका 

पिछले पांच दशकों से Natwarlal का नाम भारत में धोखाधड़ी का पर्याय बन चुका था  | Natwarlal की ठगी करने की शैली वर्षों बाद भी लगभग वैसी ही रही है, केवल उनकी कहानियाँ बदल गई हैं। उन्होंने बेदाग सफेद शर्ट और पतलून पहनकर खुद को केंद्रीय वित्त मंत्री एन.डी. तिवारी के निजी सहायक डी.एन. तिवारी के रूप में प्रस्तुत किया। नई दिल्ली के व्यस्त कॉनॉट प्लेस में उन्होंने एक घड़ी विक्रेता सुरेंद्र शर्मा से संपर्क किया और बताया कि कांग्रेस (आई) संसदीय दल की एक अहम बैठक होनी है, जिसमें सदस्यों को घड़ियाँ उपहार में दी जाएंगी।

अगले दिन वह एक कार लेकर वापस आए और शर्मा को 93 घड़ियाँ पैक करने के लिए कहा, साथ ही एक कर्मचारी को उनके साथ नॉर्थ ब्लॉक भेजने का निर्देश दिया, जहाँ से वह बैंक ड्राफ्ट जारी करेगा। नॉर्थ ब्लॉक पहुँचकर नटवरलाल ने आत्मविश्वास के साथ शर्मा के कर्मचारी को बाहर इंतजार करने को कहा। कुछ समय बाद वह 32,829 रुपये का असली दिखने वाला ड्राफ्ट लेकर लौटा और घड़ियाँ ले गया। दो दिन बाद बैंक ने शर्मा को सूचित किया कि वह ड्राफ्ट नकली था।

Natwarlal VIP बन  कर करता था ठगी

Natwarlal जौहरियों को निशाना बना रहा था और उनसे बड़ी रकम की ठगी कर रहा था। दिल्ली के राजा ज्वैलर्स में उसने खुद को उस समय के केंद्रीय वित्त मंत्री वी.पी. सिंह का निजी सहायक बताया। उसने कहा कि सिंह अपने बेटे की शादी के लिए गहने खरीदना चाहते हैं। नटवरलाल ने कुछ महंगे हार चुने और दुकान के एक मालिक को अपनी कार में बैठाकर नॉर्थ ब्लॉक ले गया। वहाँ उसने 82,000 रुपये का नकली ड्राफ्ट दिया और गहने लेकर भाग गया।


Natwarlal ने भारत की ऐतिहासिक बिल्डिंग को बेच दिया था |

Natwarlal ने बड़े सरकारी अधिकारी का रूप धारण कर विदेशियों को तीन बार ताजमहल, दो बार लाल किला, एक बार राष्ट्रपति भवन और एक बार संसद भवन बेच दिया था। संसद भवन बेचने के लिए उसने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के नकली हस्ताक्षर तक कर दिए और विदेशियों से पैसा वसूल लिया। कहते हैं कि एक बार जब राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पड़ोस के गांव में आए थे, तब नटवरलाल को उनसे मिलने का मौका मिला। नटवरलाल ने उनके सामने भी अपने हुनर का प्रदर्शन करते हुए हुबहू उनके हस्ताक्षर बना दिए, जिससे सभी हैरान हो गए। उसने राष्ट्रपति से मजाक में कहा कि अगर आप कहें तो मैं भारत का सारा विदेशी कर्ज चुका सकता हूं और उल्टा विदेशियों को भारत का कर्जदार बना सकता हूं |

Natwarlal  ने बड़े बड़े उद्योगपतियो ठगा था  

1970 के दशक से सक्रिय Natwarlal ने 1990 के दशक तक भारतीय सरकार के लिए एक बड़ी चिंता बनी रही। उस समय कहा जाता था, “ऐसा कोई नहीं जिसे नटवरलाल ने ठगा नहीं।” इसका मतलब यह था कि उन्होंने लगभग हर बड़े उद्योगपति को धोखा दिया, जिनमें टाटा, बिड़ला और धीरूभाई अंबानी जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल हैं। नटवरलाल भेष बदलने में माहिर थे।

Natwarlal को ठगो का देवता क्यों कहा गया था?

उन्हें “ठगों का देवता” भी कहा जाता था, क्योंकि देवता का एक अर्थ अमरता भी होता है। नटवरलाल के अंतिम दिनों के बाद से उन्हें कभी नहीं देखा गया, जिससे उनकी मृत्यु को लेकर रहस्य बना हुआ है। अगर वे जीवित होते, तो उनकी उम्र लगभग 110 वर्ष होती। हालांकि, अपराध की दुनिया में किसी अपराधी की मृत्यु तभी मानी जाती है जब उसका स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध हो।

Natwarlal के वकील ने अदालत में बताया कि उनकी मृत्यु 25 जुलाई 2009 को हो गई थी, और उनके छोटे भाई गंगा प्रसाद ने कहा कि उनका अंतिम संस्कार किया गया था। फिर भी, अदालत में उनकी मृत्यु और अंतिम संस्कार का कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया। इसी कारण से नटवरलाल को अमर समझा जाता है।

आज भी Natwarlal की मृत्यु का रहस्य बरकरार है।

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